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Wednesday, March 26, 2014

Two Seashore

दो किनारें

हवा गुंज रही है ऐसे,
जैसे गुनगुना रही है कुछ पंक्तियाँ।
फैल रही है ऐसे,
जैसे कह रही है कुछ कहानियाँ।

किरणें उड़ रहे हैं ऐसे,
जैसे आखों ने किये हो इशारें।
इशारों पर नाचति हैं आखें,
जैसे लहरें भरी समुंदर के दो किनारें।
मत लिखना और नाम इस रेत पर,
खींचति है वह लहरे किनारे।
मिटते नहि यह नाम पल भर,
जब तक किनारे ना भीग जाये सारे।

छा गये बादल काले काले से,
तेज़ हवा है भीगि भीगि सी।
बिजली गरजति है तोड के,
लहरें बनती है ऊँचि ऊँचि सी।

गिरती बूंदों के धार से,
भीगते है किनारे, भीगता है नज़ारा।
एक एक कण भीगि रेत कि,
मांगती है एक हाथ का सहारा।

आसमाँ उजला, किरणें उजली,
समुंदर उजला उगते सूरज के किरणों से।
नयी रात, सुबह नयी,
तितली के पंखों जैसे।

हवा गुंज रही है ऐसे,
जैसे गुनगुना रही है कुछ नयी पंक्तियाँ।
फैल रही है ऐसे,
जैसे कह रही है कुछ नयी कहानियाँ।